Lekhika Ranchi

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लोककथा संग्रह 2

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लाशों की सफाई का त्योहार: इंडोनेशिया की लोक-कथा

तरह-तरह की विचित्रताओं से भरी इस दुनिया में मनाये जानेवाले कई त्योहार भी बड़े विचित्र हैं। ऐसा ही एक त्योहार है इंडोनेशिया के दक्षिण सुलेवासी प्रांत के तोराजा समुदाय द्वारा मनाया जानेवाला मा’नेने फेस्टिवल।

मा’नेने फेस्टिवल का संबंध जीवित नहीं मृत लोगो से है। इस त्योहार को ‘लाशों की सफाई का त्योहार’ के नाम से भी जानते हैं। परंपरा के अनुसार इस त्योहार के दिन, लोग अपने प्रियजनों के शवों को कब्र से बाहर निकाल कर नहलाते-धुलाते हैं। उन्हें अच्छे और नये कपड़े पहनाते हैं, खास कर वैसे कपड़े, जो वे अपने जीवन अवस्था में पहनना चाहते थे। फिर उन्हें सजाते-संवारते हैं और उसके बाद उन्हें पकड़ कर पूरे गांव में टहलाते हैं। अंत में वापस उन्हें उन्हीं नये कपड़ों से साथ कब्र में दफन कर देते हैं।

यह त्योहार हर तीन साल बाद मनाया जाता है। उस दिन पूरे गांव में काफी धूम-धाम और रौनक रहती है। उस दिन मृतक के सारे सगे-संबंधी एक जगह इकट्ठा होते हैं। इसके अतिरिक्त वहां यह भी रिवाज़ है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवनसाथी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह तभी कर सकता है, जब वह अपने मृत जीवनसाथी का कम-से-कम एक बार मा’नेने कर चुका हो।

इस त्योहार को मनाये जाने के पीछे एक लोककथा प्रसिद्ध है। इसके अनुसार करीब सौ वर्षों पूर्व बारूप्पू नामक एक गांव का एक युवक जंगल में शिकार खेलने गया था। उसका नाम पोंग रूमसेक था, वहां उसे एक पेड़ के नीचे एक लाश क्षत-विक्षत हालत में दिखी। वह पूरी तरह से गल चुकी थी, मात्र हड्डियों का ढांचा ही नज़र आ रहा था।पोंग रूमसेक ने अपने कपड़े उतार कर उस मृत शरीर को पहना दिये। फिर श्रद्धा के साथ उसे कब्र में दफन कर दिया। उस दिन से उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होने लगे। उसे धन, उन्नति, वैभव आदि सब मिला। उसके अनुसार इसका श्रेय उस अनजान शव को दिये गये सम्मान को जाता था इस घटना के बाद से अपने पूर्वजों को सम्मान देने की यह परंपरा शुरू हो गयी. इस त्योहार को मनाने के पीछे की मूल भावना अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है।

समुदाय के लोगों को मानना है कि मृत्यु के बाद भी लोगों की आत्मा अपने परिजनों के आस-पास भटकती रहती है। अगर उनकी कोई इच्छा अपूर्ण रह गई हो, तो वे उसके लिए तड़पती रहती है। इसी कारण प्रत्येक तीन साल पर इस त्योहार को मनाया जाता है, समुदाय का मानना है कि ऐसा करने से उनके पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उन्हें सुखी-समृद्ध जीवन का आशीर्वाद देते हैं।


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साभारः लोककथाओं से।

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